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पुरुषों पर भी अत्याचार होता है |

थोडा बदलाव जरूरी ह
थोडा बदलाव जरूरी ह
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पुरुषों पर भी अत्याचार होता हे ये बात कोई नयी नहीं हे वर्षों से से हो रहा हे | पर पुरुष खुद अपने पच्छ में कुछ नहीं कर रहा हे, पर यदि नारी पर थोडा कुछ कह दिया तो तो खुद आदमी ही उसके पच्छ में सडकों पर उतर आयेगा , महिला आयोग कार्यालय में उथल पुथल मच जाएगी, हाई कोर्ट में में हडकंप , अखवार व न्यूज़ चैनलों में उत्साह, राजनीति में टीका टिप्पड़ी ,और नारी कल्याण विभाग के पैरों तले जमीन खिसक जाये, हो सकता हे भारत बंद हो जाये | पर हर दूसरा व्यक्ति पुरुष अपराध से पीड़ित हे | हर व्यक्ति गृह क्लेश से परेसान हे | नारी यदि गृह क्लेश में आकर फांसी लगा ले तो मुकद्दमा दहेज़ उत्पीडन को लेकर दर्ज होता हे | हजारों पत्नियों से पति परेशान हें ये बात जग जाहिर हे फिर इस बात के निराकरण के लिए कोई क़ानून क्यों नहीं हे| पति यदि गुस्से में आकर पत्नी को एक थप्पड़ मार दे तो भी मामला सिर्फ दहेज़ प्रथा को लेकर ही निपटता हे , अनबन तो पति पत्नी में सभी की होती हे यह कोई नहीं कहेगा कि मेरा वैवाहिक जीवन ठीक हे, पर यदि अनबन बढ़कर तलाक पर आ जाए तो जुरमाना सिर्फ पति से लगेगा , जायदाद का हिस्सा पत्नी को भी मिलेगा पति का कोई हक़ ही नहीं जैसे वह भडुआ हो कहीं का क़ानून की नजर में सभी समान हे फिर पति को यह अधिकार क्यों नहीं हे | लोगों के मुख से सुना की कन्यादान सबसे बड़ा दान हे तो क्या कोई बाप अपने पुत्र का बलिदान नहीं देता | हम ही कोई जानकार नहीं हें सायद सभी के मन ये सारे सवाल होंगे पर हम सब इसपर मौन क्यों हे सभी धारओं का संसोधन अल्प समय में हो गया पर ४९८ a का क्यों लंबित हे दोसी सिर्फ वर पच्छ ही बताया जाता हे क्यों? मुकद्दमा लगते ही वकीलों और दलालों की गाढ़ी कमाई शुरु और पुरुष की बर्बादी शुरु | यदि किसी की बेटी गृह क्लेश में आकर आत्महत्या करती हे तो वर पछ का दोष | और उसी क्लेश में किसी का बेटा आत्महत्या करे तो भी वर पछ का दोष | इस बात पर पूरा भारत मौन क्यों हे एक साथ आवाज इस बात पर भी क्यों नहीं उठती | सबसे बड़ा कारण सिक्षा और सम्म्रधि की कमी |

आज भी हम अपने समाज में सौ में नब्बे गद्दार बाप बेटी के हित में गिना सकता हूँ जो बेटी को पराया धन मानते हैं बेटी को पढ़ाने लिखाने में बहुत कम ध्यान देते हे और कह भी देते हें किसके लिए पढ़ाएं बो तो दूसरे के घर जाएगी | कमाने के लायक भी बना दिया तो ससुराल में देगी | अब में उन बुजदिलों से पूंछना चाहूँगा आपको एक सुन्दर हुनरमंद बहु चाहिए तो कमीनो अपनी बेटी को क्यों पराई समझते हो सबसे बड़ी नीचता तो हमें यह लगती हे जब कोई कहता हे बेटी पराया धन हे तो क्यों हे पराया धन ? आपकी जिस पत्नी की कोख से आपके पुत्र ने जन्म लिया उसी से बेटी ने जिस बाप की संतान आपका पुत्र हे उसी की आपकी बेटी भी तो हे | महिला आयोग भी सिर्फ महिलाओं को यही सिखाता हे की अपना हक़ लड़कर लो बो भी ससुराल में पर यह न सिखा सका कोई कि बेटी अपना हक़ पढने लिखने के लिए अपने बाप से छीनो ताकि हम जिस घर जाएँ उस घर में रोशनी ला सकें | ये सब बातें रहेंगी भी तो सिर्फ सुर्ख़ियों में कोई मजबूती से क्यों नहीं लेता इसे |

आज हमारे समाज में गृह कलेश का सबसे बड़ा कारण हे नारी की तर्कशक्ति जो सिर्फ बेटी को उचित शिक्षा से ही आती हे बो नारी में ही नहीं सभी में | और यदि सिक्षा नहीं मिल सकी किसी कारणवस् तो शंस्कार सिखाने से मिलती हे | और यदि शंस्कार नहीं सीखे हें तो सामाजिक माहोल से तर्कशक्ति सीख सकता हे व्यक्ति , या फिर जिसकी जिंदगी में हमेशा दुःख दर्द ही रहे हो उसकी तो बात ही निराली होती हे | पर जिसको शंस्कार , शिक्षा , अच्छा सामाजिक माहोल , दुःख दर्द कभी न मिले तो वह व्यक्ति हमेशा तर्कशक्ति में पीछे रहेगा वह चाहे बेटा हो या बेटी | भगवान् न करे किसी को दुःख दर्द मिले , कोई मजबूरी हो जो गंदे माहोल में रहना पड़े | पर यह तो नहीं हो सकता जो किसी को सिक्षा न मिल सके | शिक्षा तो हर जगह ले सकता हे व्यक्ति | सरकार ने घर घर शिक्षा के साधन करवा दिए हे, बेटी को शिक्षण कार्य के लिए छूट भी दे रखी हे हर जगह, फिर कोई बाप अपनी बेटी को पढने न भेजे तो यह सबसे बड़ी मूर्खता होगी उस व्यक्ति की | अपने समाज के दोष को मिटाना हे , अपने मन से मूर्खता को मिटाना हे | तो उसके लिए जरूरी हे बेटी की उचित सिक्षा तभी गृह कलेश से निपटारा मिल सकेगा |

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