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हमें गुमराह किया जाता हे |

थोडा बदलाव जरूरी ह
थोडा बदलाव जरूरी ह
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आम जनता गुमराह होती हे |
आज जो हम सब के बीच में जो युग चल रहा हे उसके बारे में सोचकर तो ऐसा लगता हे की यह कलयुग नहीं राजनीत का यूग हे , और बो भी ऐसी राजनीत जिसमे सिर्फ राजनीत को ही फायदा हो या कह सकते हे केवल राजनेता को फायदा हो जनता करे या मरे पर नेता जी को उनकी करनी का फल मिलना चाहिए और यदि करनी गलत की हे जब उसका भी परिणाम आने को होता हे तो वह अपना रास्ता ही छोड़ देते हे ताकि उनके किये की सजा उन्हें न मिल सके |
एक छोटे से उदहारण से ही देख लो जनता अगर B.S.P. का साथ छोडती नजर आती हे तो उनके बिधायक पार्टी के मुखिया का साथ छोड़ देते हे और किसी बिपछि पार्टी में सम्मलित हो जाते हे | उदहारण में हमने सिर्फ B.S.P. को ही लिखा पर ये बात नहीं हे की हम इस पार्टी से प्यार नहीं करते ऐसी घटिया घटनाएं तो पिछले समय में भी घटती आयीं हे कोई बड़ी बात नहीं हे बो भी हर पार्टी में, और इतनी घटिया राजनीत रही तो सायद होतीं रहेंगी | अब सवाल तो इस बात का हे की आखिर जनता किसी पार्टी का साथ छोडती क्यों हे ? जबाब आपके पास भी हे आप भी जानते हे की आखिर किसी भी राजनीतिक दल की इतनी बड़ी बेइज्जती चुनाव के परिणाम आने पर क्यों हो जाती हे ? आप भी समझ सकते हे | पर अब तो अच्छा माहोल हो गया हे कि चुनाव के पहले ही पार्टी की बेइज्जती शुरु हो जाती हे | अभी तजा उदहारण समाजवादी पार्टी से ही लेलो | क्या एक दुसरे का बैंड बजाने में कोई कसर छोड़ रहा हे |
जबाब आपके पास भी हें मेरे सवालों के और बो भी उचित ही होंगे | जरा गहराई से सोचकर देखिये की आखिर किसी राजनीतिक दल का साथ किसी नेता ने छोड़ा हे तो इसलिए छोड़ा हे कि बो भी जानता हे मेरी पार्टी ने अपनी सत्ता के समय में जनता को हजारों सुख देने की सांत्वना से वंचित किया हे जनता अब इस पार्टी का सहयोग नहीं देगी और जिसकी सजा मुझे हारकर मिलेगी | और अपनी पुरानी पार्टी को छोड़कर नयी पार्टी में सम्मलित भी होता हे तो ऐसे दल से मिलेगा जिसकी सत्ता हो या फिर जनता को झांसा देने में माहिर हो , तो सायद उसके चहरे को देखकर लोग वोट देवें | दूसरी बात जब कोई पार्टी का मुखिया अपने मंत्री मंडल से बर्खास्त करता हे तो इसलिये आपने उनके मन का काम नहीं किया | राजनीत भी होती हे तो सिर्फ वोट बैंक के लिए सभी जानते हे , अखवारों और न्यूज़ चेनलों में नेताओं के एक दूसरे पर टीकरे फोड़ने के भाषण सुन-सुन कर मेरे ही नहीं सायद सभी के कान थक चुके हे | जातिवाद , आरक्षण और धर्म समुदाय के पछ्पात के भाषण से भी मन ऊब चूका हे | रोजाना T.V. पर सबसे बड़ी बहस को सुनकर लगता हे कि हो गया समस्या का समाधान पर जैसे ही न्यूज़ ख़तम हुई समस्या फिर जस की तस, जनता बदलाव चाहती हे सिर्फ वोट बैंक के भाषण में ही नहीं नेताओं के कार्य शेली में भी | रोजाना राजनीत के द्वारा नए कार्य का शिल्ल्यानास तो होते देखा पर लोगों के चेहरों में वही रूखापन वही आत्मा में सूखापन कहीं खुशियों की लहर दिखाई नहीं देती | हर आम आदमी के मन को यह बात तब तब कुरेदती हे जब जब कहीं राजनीत की चर्चा होती हे कि सबने इनको मिलकर सत्ता में बिठाया और इन्होने बाबा जी का ठुल्लू दिखाया | हम कुछ कह भी नहीं सकते मजबूरी में बंधे हे | आम जनता को चुनाव आयोग भी गुमराह करने में जुटा हे | हर चुनाव के पहले अपना प्रचार शुरु कर देता हे वोट न डालना कानूनी अपराध हे, पर यह नहीं कह सकता की अपराधी का चुनाव लड़ना भी गैरकानूनी है | सबसे बड़े जो अपराधी हे बो ऐसे घुमते हे लगता हे कि बहुत ही भले लोग हे , जो सबसे भला हे हमेसा क़ानून की मदद करने की कोशिश करता हे उससे कानून हमेशा क्रूरता से पेश आता हे | तब लगता हे की क़ानून सिर्फ आम आदमी के लिए बना हे लफंगों को उसकी जानकारी भी नहीं हे | और ऐसे जीते जागते उदहारण आपके आस-पास भी होंगे |

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